केंद्र सरकार ने किसी भी कंप्यूटर सिस्टम में रखे गए किसी भी डेटा की निगरानी करने और उन्हें देखने के अधिकार दस केंद्रीय एजेंसियों को दिए हैं. केंद्रीय गृह मंत्रालय के साइबर एवं सूचना सुरक्षा प्रभाग ने यह आदेश जारी कर दिया है.
गृह सचिव राजीव गौवा द्वारा जारी आदेश के अनुसार दस केंद्रीय जांच और खुफिया एजेंसियों- खुफिया ब्यूरो (IB), नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB), प्रवर्तन निदेशालय (ED), केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT), राजस्व खुफिया निदेशालय (DRI), केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI), राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA), रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (RAW), सिग्नल खुफिया निदेशालय (जम्मू-कश्मीर, पूर्वोत्तर में सक्रिय) और दिल्ली पुलिस को अब सूचना प्रौद्योगिकी कानून के तहत किसी कंप्यूटर में रखी गई सारी जानकारी देखने, उन पर नजर रखने और उनका विश्लेषण करने का अधिकार होगा.
सुरक्षा और खुफिया एजेंसियां ‘‘उक्त अधिनियम (सूचना प्रौद्योगिकी कानून, 2000 की धारा 69) के तहत किसी कंप्यूटर सिस्टम में तैयार, पारेषित, प्राप्त या भंडारित किसी भी प्रकार की सूचना के अंतरावरोधन (इंटरसेप्शन), निगरानी (मॉनिटरिंग) और विरूपण (डीक्रिप्शन) के लिए प्राधिकृत हैं’’ सूचना प्रौद्योगिकी कानून की धारा 69 किसी कंप्यूटर संसाधन के जरिए किसी सूचना पर नजर रखने या उन्हें देखने के लिए निर्देश जारी करने की शक्तियों से जुड़ी है. इसके अलावे केंद्रीय गृह मंत्रालय को भारतीय टेलीग्राफ कानून के प्रावधानों के तहत फोन कॉलों की टैपिंग और उनके विश्लेषण के लिए खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों को अधिकृत करने या मंजूरी देने का अधिकार पूर्व से प्राप्त है.
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इस मसले पर विपक्ष के सवालों का जवाब देते हुए कहा राज्य सभा में कहा कि इससे आम लोगों के जीवन पर कोई असर नहीं होगा. अठारह वर्ष पहले आये इन्फर्मेशन टेक्नॉलजी ऐक्ट के सेक्शन 69 में यह कहा गया है कि राष्ट्रीय सुरक्षा, संप्रभुता और एकता को लेकर किसी चिंताजनक स्थिति में सक्षम एजेंसियां यह जांच कर सकती हैं. आनंद शर्मा के मंत्री रहते 2009 में UPA सरकार ने कानून बनाया था, वही आदेश 20 दिसंबर को रिपीट हुआ है. इनमें वही एजेंसियां हैं जो समय-समय प नोटिफाइ होती रही हैं. इसके अनुसार किसी भी फोन या फिर कंप्यूटर की निगरानी नहीं हो सकती या कोई व्यक्ति निगरानी नहीं कर सकता. इसमें आम लोगों पर निगरानी जैसी कोई बात ही नहीं है, इसके तहत आम आदमी के अधिकारों और उनकी प्रिवेसी में दखल का कोई सवाल ही नहीं उठता. राष्ट्रीय सुरक्षा, पब्लिक ऑर्डर, देश की अखंडता से खिलवाड़ या खतरे आदि से जुड़े मुद्दों पर नामित एजेंसियां ही जांच कर सकती हैं.
राज्य सभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद जेटली के वाब से संतुष्ट नहीं दिखे और और सदन में हंगामा करते रहे. आजाद ने कहा कि इस आदेश में ऐसा जिक्र नहीं किया गया है कि यह आदेश राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनजर ही जारी किया गया है और आम लोगों पर इसका कोई असर नहीं होगा.
इस आदेश पर प्रतिक्रिया देते हुए ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलीमीन के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि केन्द्र सरकार ने महज एक सामान्य से सरकारी आदेश के जरिए देश में सभी कंप्यूटर की जासूसी का आदेश दे दिया है. ओवैसी ने कहा कि क्या केन्द्र सरकार इस फैसले से ‘घर-घर मोदी’ का अपना वादा निभा रही है.
NCP नेता माजिद मेमन ने इसे आम लोगों की निजता में दखल बताते हुए कहा कि “आखिर कैसे कोई भी एजेंसी किसी के भी घर में घुसकर उनके कंप्यूटर डेटा की जांच कर सकती है”. कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने भाजपा के नारे की तर्ज पर ही इस आदेश पर हमला करते हुए कहा कि “अबकी बार, निजता पर वार”.
वैसे ड्रग्स, इनकम टैक्स, स्मगलिंग, आर्थिक अपराध पर नज़र रखने की दृष्टी से “हर कंप्यूटर पर सरकार की नजर, देश के दुश्मनो की अब खैर नहीं” माना जा रहा है.
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