रोटी, कपड़ा और मकान के साथ-साथ शिक्षा भी आज अनिवार्य है. व्यक्ति के अशिक्षित रहने पर उसे जीने के अधिकार से वंचित माना जाना चाहिए. अतः आवश्यक है कि अब मात्र रोटी, कपड़ा और मकान को ही मूलभूत आवष्यकता न मानते हुए उसमें शिक्षा का भी समावेश किया जाए.
बीवीएचए पटना परिसर में प्रजनन स्वास्थ्य एवं अधिकार विषय पर दो दिवसीय राज्य स्तरीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में चर्चा के दौरान बिहार बाल आवाज मंच के संयोजक राजीव रंजन ने कहा कि शिक्षा के व्यावसायिकरण के कारण पूरी शैक्षणिक व्यवस्था बर्बाद हो गयी है. सत्ता सबकुछ दे सकती है परन्तु शिक्षा नहीं जिसका उदाहरण हजारों- हजार वर्ष से मिलता रहा है.
राजीव ने कहा कि वर्तमान शैक्षणिक सत्र के सात महीने से ज्यादा बीत गये. आज तक प्रदेश के तमाम विद्यार्थियों को सभी विषयों की पुस्तकें भी नहीं मिल पायी हैं. हमें रिलिफ पर जिंदा रहने को सत्ता द्वारा विवश किया जा रहा है, जबकि हमें अपना अधिकार चाहिये. उन्होंने सामाजिक व्यवस्था और उसके चाल-चरित्र पर प्रहार करते हुए कहा कि आज जगह-जगह दलित व महिला थाना बन गये हैं. परन्तु, दलितों व महिलाओं पर अत्याचार दिन-प्रतिदिन बढ़ते ही जा रहे हैं. आज साक्षरता दर लगभग 70 प्रतिशत है जो पहले मात्र 30 प्रतिशत थी. उस समय के निरक्षर समाज ने अपनी जमीनें और श्रम दान देकर बच्चों के भविष्य के लिए स्कूल बनवाये. तब स्कूलों के कार्यालयों में सिर्फ ताले लगते थे. वहाँ कुएं पर डोरी-बाल्टी खुले में रखे जाते थे, जिनसे राहगीर भी अपनी प्यास बुझाया करते थे. आज स्कूलों में चापाकल गड़ने के दूसरे ही दिन उसका मुंडा गायब हो जाते हैं. इस पर भी हमसब को विचार करना होगा.
दलित विकास अभियान समिति के निदेशक धर्मेन्द्र कुमार ने सामाजिक विभेद को रेखांकित करते हुए कहा कि यौन अपराध में अधिकांशतः समाज के निचले वर्ग की महिलायें ही शिकार क्यों होती हैं? इस पर गंभीरता से विचार करना होगा और इसके समाधान की दिशा में आगे बढ़ना होगा. उन्होंने शिक्षा के अधिकार के तहत निजी स्कूलों में 25 प्रतिशत कमजोर परिवार के बच्चों के नामांकन की अनिवार्यता को कागजी शेर बताते हुए सवाल खड़ा किया कि क्या एक भी वैसे निजी स्कूल का नाम बताया जा सकता है जो अपने यहां 25 प्रतिशत गरीब बच्चों का नामांकन करते हों.
बिहार हेल्थ वाच फोरम की देविका विश्वास ने समाज में परिवार नियोजन की पूरी जिम्मेवारी एकमात्र महिलाओं के कंधे पर रहने को घोर चिंताजनक ठहराते हुए कहा कि पुरूष नसबंदी को बढ़ावा दिया जाना आवश्यक है. उन्होंने बताया कि केन्द्र सरकार द्वारा सितंबर 2016 में सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि तीन वर्ष बाद देश में कहीं भी शिविर लगाकर नसबंदी नहीं होगी. उन्होंने कहा कि बिहार देश का अकेला राज्य है, जिसने जनसंख्या नियंत्रण हेतु किये गये सार्थक प्रयास के लिए लगातार चार वर्ष अवार्ड प्राप्त किया है. परन्तु, यह अवार्ड सिर्फ महिलाओं द्वारा परिवार नियोजन कराये जाने के फलस्वरूप है. इसका ज्वलंत उदाहरण फारबिसगंज अनुमंडलीय अस्पताल है, जिसे प्रदेश में सर्वाधिक पुरूष नसबंदी करने के रूप में जाना जाता है. वहां 2017-2018 में कुल 1572 पुरूष बंध्याकरण किये गये हैं, जबकि 38 सौ से अधिक महिलाओं के नसबंदी हुए हैं.
अंतिम सत्र में समूहों में हुए विचार-विमर्श के उपरांत कई ज्वलंत मुद्दे उभरकर आये, जिन्हें केन्द्र बिन्दु में रखते हुए भविष्य की योजना बनाने पर सहमति बनी. ग्यारह व्यक्तियों के समूह संख्या पांच ने सुझाव दिया कि तमाम स्वास्थ्य उपकेन्द्रों से लेकर मेडिकल काॅलेज व अस्पताल में पदस्थापित चिकित्सकों एवं पारामेडिकल कर्मियों की उपस्थिति सुनिश्चित कराने तथा केन्द्रों पर अधिकाधिक जांचों की सुविधा उपलब्ध कराने के प्रयास किये जायें. शिक्षा क्षेत्र में उपलब्ध संसाधनों के आलोक में रैंडम रूप से विद्यालयों का चयन कर लगातार 20 से 25 दिन तक लगातार सामाजिक अंकेक्षण कराया जाये. इसी प्रकार निजी विद्यालयों के संचालन में एनओसी एवं मान्यता मिलने के शर्तों का पालन हो रहा है या नहीं, इसका भी सामाजिक अंकेक्षण कराया जाये.
इसके पूर्व शनिवार को प्रशिक्षण कार्यक्रम को संबोधित करते हुए पटना के क्षेत्रीय विकास पदाधिकारी प्रवीण कुमार ने कहा कि सरकार मानव के बेहतर जीवन का प्रयास कर रही है पर बढ़ती जनसंख्या के कारण हमारा जीवन बेहतर नहीं हो पा रहा है. सरकार की योजनाओं का भरपूर लाभ जनता उठाएं. उन्होंने कहा कि बिहार में बेहतर चिकित्सक हैं लेकिन राज्य के बाहर उन्हें बेहतर वेतन मिलने के कारण वे राज्य के बाहर सेवा देते हैं.
बीवीएचए पटना के निदेशक स्वपन मजूमदार ने कहा कि हम सभी अपनी जिम्मेवारी का भरपूर निर्वाहन करें. समुदाय को जागरूक करने का भरपूर प्रयास किया जा रहा है क्योंकि जानकारी के अभाव में समुदाय अपने अधिकार से वंचित रह जाते हैं. उन्हें उनके अधिकार की जानकारी दी जा रही है.
दीपक कुमार सिंह अधिवक्ता ने कहा कि पुरुष एवं महिला को समान अधिकार है और अपने अधिकार को समझने का अधिकार भी हर महिलाओं एवं पुरुषों को है. जानकारी के अभाव में हम अपने अधिकार को प्राप्त नहीं कर सकते हैं. उन्होंने युवाओं एवं प्रजनन अधिकार, स्वास्थ्य सेवा, परिवार नियोजन, भोजन व शिक्षा अधिनियम पर विस्तृत प्रकाश डाला. आरपीएफ के रूपेश कुमार ने कहा कि हर व्यक्ति का स्वास्थ्य भोजन से जुड़ा है. भोजन के बिना कुछ भी संभव नहीं है. जन्म लिया है तो जीने और भोजन करने का अधिकार है. सही भोजन के अभाव में लोग कुपोषण के शिकार हो जाते हैं. महिलाओं में खून की कमी के कारण कई तरह की बीमारियां होती है. संतुलित भोजन के अभाव में मृत्यु दर बढ़ रही है.
खुर्शीद एकराम अंसारी ने सेक्स एवं स्वास्थ्य विषय पर अपनी बात रखते हुए कहा कि स्वास्थ्य को शारीरिक, मानसिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक के रूप में चित्रित किया गया है. स्वास्थ्य एक मूलभूत मानव अधिकार है. सटीक एवं सही जानकारी और साधन प्राप्त करने का अधिकार सभी के लिए समान रूप से उपलब्ध होना चाहिए. योनि एवं प्रजनन सुरक्षा के साथ यौनिक हिंसा एवं दबाव से मुक्त एवं निजता का अधिकार भी प्राप्त होना चाहिए. उन्होंने सेक्स संबंधी, स्वास्थ्य संबंधी और सेक्सुअल अधिकार पर विस्तृत प्रकाश डाला. इस मौके पर एचआरएलएन दिल्ली से आये सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता दीपक कुमार सिंह, प्रयास पटना के दिनेश यादव, एचआरएलएन पटना के राज्य समन्वयक विकास कुमार पंकज, जागरण कल्याण भारती फारबिसगंज के अध्यक्ष संजय कुमार, सामाजिक शैक्षणिक कल्याण संघ मधेपुरा के सचिव संजय कुमार सुमन, सत्येंद्र कुमार शांडिल्य समेत विभिन्न जिले से आए हुए एनजीओ के प्रतिनिधि ने भाग लिया. सिम्बाइसिस इंटरनेशनल लाॅ स्कूल की छात्रा सना खान ने एंकरिंग, निबंधन और सर्टिफिकेशन का कार्य अच्छे ढंग से किया. कार्यक्रम का शानदार संचालन प्रयास के राज्य समन्वयक गोवर्धन यादव ने किया.
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