प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 8 नवंबर 2016 को नोटबंदी की घोषणा के समय कई अन्य लाभों में एक लाभ भारत को कैशलेस इकोनॉमी बनाना भी बताया गया था. जिसमें बढ़त स्पष्ट देखने को मिल रहा है.
पेमेंट काउंसिल ऑफ इंडिया के अनुसार वर्ष 2011 से 2016 के बीच जहाँ डिजिटल ट्रांजैक्शन का कंपाउंड वार्षिक वृद्धि दर 28.4 प्रतिशत था वो उसके बाद बढकर 44.6 प्रतिशत पंहुच गया है. नोटबंदी के बाद डिजिटल ट्रांजैक्शन पेमेंट का तेजी से बढ़ा है और इसके 2023 तक एक ट्रिलियन डॉलर के सालाना व्यवसाय के पार कर जाने की पूरी संभावना है.
2015-16 में एनईएफटी वॉल्यूम 1.25 लाख करोड़ रुपये का था, जो 2017-18 में 50 प्रतिशत बढ़त के साथ 1.95 लाख करोड़ पहुंच गया है. वहीं, आईएमपीएस ट्रांजैक्शन में पांच गुना की बढ़ोतरी हुई है. यह 2015-16 के दौरान मात्र 22 हजार करोड़ रुपये था, जो अब बढ़कर एक लाख करोड़ रुपये के पार चला गया है. डेबिट, क्रेडिट और प्रीपेड इंस्ट्रूमेंट्स व वॉलेट्स में तो 236 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. पहले इनके जरिये लेन-देन 4.48 लाख करोड़ रुपये का हुआ था जो अब बढ़कर 10.6 लाख करोड़ रुपये हो गया है. आरटीजीएस ट्रांजैक्शन 41 प्रतिशत बढ़ोतरी के साथ 824 लाख करोड़ से बढ़कर 1167 लाख करोड़ पहुंच गया है.
इस तरह नोटबंदी के बाद लोगों के बीच डिजिटल ट्रांजैक्शन को लेकर जागरूकता फैली. इसका परिणाम ही है कि नोटबंदी के 2 साल बाद कैशलेस लेन-देन में काफी बढ़ोतरी हुई है. हाँलाकि डिजिटल पेमेंट मार्केट के बढ़ते आकार ने इसमें सेंध लगाकर आम लोगों की कमाई को नाजायज ढंग से अपना बना लेने वालों को भी आकर्षित किया है.
इस स्थिति से निपटने के लिए सायबर सुरक्षा सिस्टम को लेकर अत्यधिक कारगर उपाय की भी जरूरत भी बढ़ी है. सायबर सेंधमारी करने वालों से निपटने के लिए सर्वोत्तम इंतजाम करने होंगे, अन्यथा तकनीक का इस्तेमाल कर लोगों की कमाई हड़पने का मंसूबा पल रहे लोग आम जन को डिजिटल पेमेंट सिस्टम का इस्तेमाल करने के प्रति उदासीन कर सकते हैं. भविष्य में यह उदासीनता डिजिटल इंडिया मुहिम के लिए एक बड़ा झटका हो सकता है.
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