शनि जयंती पर शनि देव की विशेष पूजा का विधान है. शनि देव को प्रसन्न करने के लिए अनेक मंत्रों व स्तोत्रों का गुणगान किया जाता है। भारतीय/वेदिक ज्योतिष में शनि देव नौ मुख्य ग्रहों में से एक हैं, शनि अन्य ग्रहों की तुलना मे धीमे चलते हैं इसलिए इन्हें शनैश्चर भी कहा जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार शनि के जन्म के विषय में काफी कुछ बताया गया है और ज्योतिष में शनि के प्रभाव का साफ़ संकेत मिलता है। सम्पूर्ण सिद्धियों के दाता सभी विघ्नों को नष्ट करने वाले सूर्य पुत्र ‘शनिदेव’ ग्रहों में सबसे शक्तिशाली ग्रह हैं। जिनके शीश पर अमूल्य मणियों से बना मुकुट सुशोभित है। जिनके हाथ में चमत्कारिक यन्त्र है। शनिदेव न्यायप्रिय और भक्तो को अभय दान देने वाले हैं। प्रसन्न हो जाएं तो रंक को राजा और क्रोधित हो जाएं तो राजा को रंक भी बना सकते हैं। ‘स्कन्द पुराण’ के मुताबिक सूर्य की दूसरी पत्नी छाया के गर्भ से शनि देव का जन्म हुआ था। कथा है कि शनि के श्याम वर्ण को देखकर सूर्य ने अपनी पत्नी छाया पर आरोप लगाया कि शनि उनका पुत्र नहीं है। जब शनि को इस बात का पता चला तो वह अपने पिता से क्रुद्ध हो गए। इसी के चलते शनि और सूर्य में बैर की बात कही जाती है। शनि ने अपनी साधना और तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न कर अपने पिता सूर्य देव के समतुल्य शक्तियां अर्जित कीं। प्रत्येक अवस्था में एक संतुलन और होश को बांधे रखने में शनिदेव हमारे सहायक हैं। शनि प्रकृति में भी संतुलन बनाये रखते हैं और प्रत्येक प्राणी के साथ न्याय करते हैं। ऐसे में शनि से घबराने की आवश्यकता नहीं है बल्कि शनि को अनुकूल कार्य कर प्रसन्न किया जा सकता है। शनि जयन्ती के दिन हमें काला वस्त्र, लोहा, काली उड़द, सरसों का तेल दान करना चाहिए, तथा धूप, दीप, नैवेद्य, काले पुष्प से इनकी पूजा करनी चाहिए। कालपुरूष सिद्धांत के अनसार शनि व्यक्ति के कर्म और लाभ क्षेत्र को प्रभावित करता है और अपनी दृष्टि से व्यक्ति के मन मस्तिष्क, प्रेम, संतान पारिवारिक सुख, दांपत्य जीवन, सेहत, दुर्धटना और आयु को प्रभावित करता है। शनि से प्रभावित व्यक्ति कई प्रकार के अनावश्यक परेशानियों से घिरे हुए रहते हैं। कार्य में बाधा का होना, कोई भी कार्य आसानी से न बनना जैसी स्थितियों का सामना करना पड़ता है। इस समस्या को कम करने हेतु शनिचरी अमावस्या के दिन शनि से संबंधित वस्तुओं का दान करना उत्तम रहता है। जिन लोगों की जन्म कुंडली में शनि का कुप्रभाव हो उन्हें शनि के पैरों की तरफ ही देखना चाहिए, जहां तक हो सके शनि दर्शन से भी बचना चाहिए। कोरे कपड़े पहनकर जो नए और बगैर धुले होते हैं कुछ समस्याओं को स्वयं निमंत्रण दे देते हैं। कहा जाता है कि सूर्य ने सभी पुत्रों को बराबर राज्य बांट दिया। इससे शनिदेव खुश नही हुए। वह अकेले ही सारा राज्य चलाना चाहते थे, यही सोचकर उन्होनें ब्रह्माजी की अराधना की। ब्रह्माजी उनकी अराधना से प्रसन्न हुए और उनसे इच्छित वर मांगने के लिए कहा। शनि देव बोले- मेरी शुभ दृष्टि जिस पर पड़ जाए उसका कल्याण हो जाए तथा जिस पर क्रूर दृष्टि पड़ जाए उसका सर्वनाश हो जाए। ब्रह्मा से वर पाकर शनिदेव ने अपने भाईयों का राजपाट छीन लिया। उनके भाई इस कृत्य से दुखी हो शिवजी की अराधना करने लगे। शिव ने शनि को बुला कर समझाया तुम अपनी शक्ति का सदुपयोग करो। शिवजी ने शनिदेव और उनके भाई यमराज को उनके कार्य सौंपे। यमराज उनके प्राण हरे जिनकी आयु पूरी हो चुकी है, तथा शनि देव मनुष्यों को उनके कर्मो के अनुसार दण्ड़ या पुरस्कार देंगे। माना जाता है रावण के योग बल से बंदी शनिदेव को लंका दहन के समय हनुमान जी ने बंधन मुक्त करवाया था। बंधन मुक्त होने के ऋण से मुक्त होने के लिए शनिदेव ने हनुमान से वर मांगने को कहा। हनुमान जी बोले कलियुग मे मेरी अराधना करने वाले को अशुभ फ़ल नही दोगे। शनि बोले- ऐसा ही होगा। तभी से जो व्यक्ति हनुमान जी की पूजा करता है, वचनबद्ध होने के कारण शनिदेव अपने प्रकोप को कम करते हैं। शनि ग्रह पृथ्वी से सबसे दूर का मूल ग्रह है जिसे सात मूल ग्रहों में स्थान दिया गया है| ज्योतिषीय मतानुसार यह ग्रह पृथ्वी से 791000000 मील की दूरी पर है| इसका व्यास 71500 मील [मतान्तर से 74932 मील] माना गया है| सूर्य से इसकी दूरी 886000000 मील है| यह अपनी धुरी पर 10 घंटे 30 मिनट में घूमता है जबकि सूर्य के चारो ओर परिक्रमा करने में इसे प्रायः 10759 दिन 6 घंटे अर्थात लगभग 29 वर्ष 6 महीने लगते हैं| सूर्य के समीप पहुचने पर इसकी गति लगभग 60 मील प्रतिघंटा ही रह जाती है| इसके 10 चन्द्रमा अर्थात उपग्रह हैं| यह अन्य ग्रहों की अपेक्षा हल्का और ठंडा है| इसका वाहन भैंसा, वार शनिवार, प्रतिनिधि पशु- कालाघोडा, भैंसा और बकरी है| यह लोहा, नीलम, तेल, शीशा, भैंस, नाग, तिल, नमक, उड़द, बच तथा काले रंग की वस्तुओं का अधिपति है| यह कारागार, पुलिस, यातायात, ठेकेदारी, अचल संपत्ति, जमीन, मजदूर, कल कारखाने, मशीनरी, छोटे दुकानदार तथा स्थानीय संस्थाओं के कार्यकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करता है| बलवान शनी विशिष्टता, लोकप्रियता, सार्वजनिक प्रसिद्धि एवं सम्मान को देने वाला भी होता है| इसके द्वारा वायु, शारीरिक बल, उदारता, विपत्ति, दुःख, योगाभ्यास, धैर्य, परिश्रम, पराक्रम, मोटापा, चिंता, अन्याय, विलासिता, संकट, दुर्भाग्य, व्यय, प्रभुता, ऐश्वर्य, मोक्ष, ख्याति, नौकरी, अंग्रेजी भाषा, इंजीनियरी, लोहे से सम्बंधित काम, साहस तथा मूर्छा आदि रोगों के सम्बन्ध में विचार किया जाता है | शनि जयंती पर्व का लाभ लेने के लिए सर्वप्रथम स्नानादि से शुद्ध होकर एक लकड़ी के पाट पर काला कपड़ा बिछाकर उस पर शनिजी की प्रतिमा या फोटो या एक सुपारी रख उसके दोनों ओर शुद्ध घी व तेल का दीपक जलाकर धूप जलाएँ। इस शनि स्वरूप के प्रतीक को जल, दुग्ध, पंचामृत, घी, इत्र से स्नान कराकर उनको इमरती, तेल में तली वस्तुओं का नैवेद्य लगाएँ। नैवेद्य के पूर्व उन पर अबीर, गुलाल, सिंदूर, कुंकुम एवं काजल लगाकर नीले या काले फूल अर्पित करें। नैवेद्य अर्पण करके फल व ऋतु फल के संग श्रीफल अर्पित करें। इस पंचोपचार पूजन के पश्चात इस मंत्र का जप कम से कम एक माला से करें- “ॐ प्रां प्रीं प्रौ स. शनये नमः”l माला पूर्ण करके शनि देवता को समर्पण करें। पश्चात आरती करके उनको साष्टांग प्रणाम करें। शनि जयंती के दिन तेल में बनी खाद्य सामग्री का दान गाय, कुत्ता व भिखारी को करें। इस दिन विकलांग व वृद्ध व्यक्तियों की सेवा अवश्य करें। जब कभी शनिजी की प्रतिमा को देखें, उस समय सावधानी रखें। कभी भी शनि देव की आँखों को नहीं देखें। अपने मता पिता का आदर-सम्मान करेंl शनि के अशुभ प्रभाव को दूर करने के लिए तिल का तेल एक कटोरी में लेकर उसमें अपना मुंह देखकर शनि मंदिर में रख आएं। तिल के तेल से शनि विशेष प्रसन्न रहते हैं। काली चीजें जैसे काले चने, काले तिल, उड़द की दाल, काले कपड़े आदि का दान नि:स्वार्थ मन से किसी गरीब को करें, शनिदेव प्रसन्न होंगे। नित्य प्रतिदिन भगवान भोलेनाथ पर काले तिल व कच्चा दूध चढ़ाना चाहिए, यदि पीपल वृक्ष के नीचे शिवलिंग हो तो अति उत्तम होता है। पीपल की जड़ में केसर, चंदन, चावल, फूल मिला पवित्र जल अर्पित करें, तिल का तेल का दीपक जलाएं ।

 9 Views

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *