एनडीटीवी के प्रमोटरों प्रणय रॉय और राधिका रॉय और उनके स्वामित्व वाली कंपनियों के खिलाफ विदेशी मुद्रा नियमों के उल्लंघन की आयकर विभाग तथा प्रवर्तन निदेशालय ने वर्ष 2011- 2012 में UPA सरकार के कार्यकाल में ही जांच शुरु हो गयी थी। एनडीटीवी के प्रमोटरों के ठिकानों पर CBI के छापे को लेकर भले ही आज हो हल्ला मचा हुआ है लेकिन हकीकत यह है कि एनडीटीवी के खिलाफ जांच की शुरुआत तत्कालीन UPA सरकार के शासनकाल में ही हो चुकी थी। प्रणय रॉय, राधिका रॉय और उनके स्वामित्व वाली कंपनियों के खिलाफ विदेशी मुद्रा नियमों के उल्लंघन और कर चोरी के मामले में आयकर विभाग तथा प्रवर्तन निदेशालय ने UPA सरकार के कार्यकाल में 2011 और 2012 में ही जांच शुरु कर दी थी। आयकर विभाग ने एनडीटीवी के विरुद्ध पहला आदेश भी लोक सभा चुनाव की अधिसूचना जारी होने से ठीक पहले पहला आदेश 21 फरवरी 2014 को जारी किया था, जबकि वित्त मंत्री पी चिदंबरम थे। सूत्रों के अनुसार एनडीटीवी ने ब्रिटेन, मॉरीसस, नीदरलैंड, स्वीडन और संयुक्त अरब अमीरात में शेल कंपनियां बनाकर 1100 करोड़ रुपये की मनी लांड्रिंग की थी। सूत्रों का कहना है कि एनडीटीवी समूह की नीदरलैंड स्थित शेल कंपनियों में 642 करोड़ रुपये आए जिसपर टैक्स नहीं दिया गया। एनडीटीवी इस मामले को लेकर विवाद समाधान पैनल (DRP) में गया, जहाँ एनडीटीवी की अपील खारिज हो गयी। इसके बाद आयकर विभाग ने 21 फरवरी 2014 को एनडीटीवी को टैक्स जमा करने का आदेश दिया था। सूत्रों के अनुसार एनडीटीवी के शेयर की कीमत जब 140 रुपये थी तब उसके प्रमोटरों यानी राधिका रॉय, प्रणय रॉय तथा उनकी कंपनी ने यह शेयर मात्र 4 रुपये की दर से खरीदा। सूत्रों का कहना है कि RRPR (राधिका रॉय और प्रणय रॉय की कंपनी) ने ICICI बैंक से जो लोन लिया था, उसमें से 91 करोड़ रुपये डा. प्रणय रॉय और राधिका रॉय को डाइवर्ट किए गए जो लोन एग्रीमेंट के प्रावधानों के विरुद्ध थे। दरअसल ICICI बैंक ने RRPR को यह लोन कारपोरेट खर्च के लिए दी थी। CBI ने मीडिया की स्वतंत्र आवाज दबाने तथा प्रणय रॉय और राधिका रॉय को जानबूझकर परेशान करने के एनडीटीवी के आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि वह मीडिया की आजादी का सम्मान करती है। इसीलिए छापे में एनडीटीवी के प्रसारण से संबंधित किसी भी जगह की तलाशी नहीं ली गई और छापे की कार्रवाई एनडीटीवी के प्रमोटर प्रणय रॉय और राधिका रॉय के ठिकानों तक सीमित थी। CBI का कहना है कि यह मामला ICICI बैंक के कुछ अधिकारियों के साथ आपराधिक साजिश के तहत 48 करोड़ नुकसान पहुंचाने का है और इसकी शिकायत एनडीटीवी और ICICI बैंक के शेयरहोल्डर ने की है।

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