अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पेरिस जलवायु समझौते से अमेरिका के पीछे हटने की घोषणा की है और ग्लोबल वार्मिंग को धीमा करने के प्रयासों को अधर में डाल पूरी दुनिया को स्तब्ध कर दिया है. इस घोषणा पर नाराजगी जताते हुए भारत समेत विश्व के तमाम देशों ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है. भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसपर अपनी प्रतिक्रिया में कहा है कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कदम नहीं उठाना नैतिक अपराध होगा। ट्रंप के इस विचार को यूरोप के उसके गुस्साए सहयोगियों समेत कई देशों ने खारिज किया है. फ्रांस, जर्मनी और इटली ने एक संयुक्त बयान में कहा कि समझौते पर फिर से वार्ता नहीं हो सकती. अमेरिका चीन के बाद ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करने वाला विश्व का दूसरा सबसे बड़ा देश है इसलिए ट्रंप के इस फैसले से उत्सर्जन कम करने एवं वैश्विक तापमान वृद्धि को सीमित करने के प्रयासों पर गंभीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है. फ्रांस के राष्ट्रपति इमेन्युएल मैक्रान ने कहा कि डोनाल्ड ट्रंप ने पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते से अलग हो कर ऐतिहासिक भूल की है. साथ ही उन्होंने जलवायु परिवर्तन पर काम करने वाले अमेरिकी वैज्ञानिकों को फ्रांस में आकर काम करने के लिये आमंत्रित किया है. जर्मनी ने कहा कि अमेरिका पूरे ग्रह को नुकसान पहुंचा रहा है. यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष ज्यां क्लाउदे जंकर ने इस फैसले को बिल्कुल गलत करार दिया. इस घोषणा के मद्देनजर टेस्ला और स्पेसएक्स के प्रमुख एलन मस्क और डिज्नी प्रमुख राबर्ट इगर ने घोषणा की कि वे राष्ट्रपति की कारोबारी परिषदों में अब शामिल नहीं होंगे. चीन का कहना है कि वह पेरिस जलवायु करार के साथ खड़ा है. अमरीका के पीछे हटने और पेरिस जलवायु करार पर प्रतिबद्धता जताने के लिए चीन के साथ यूरोपियन यूनियन शनिवार को बयान जारी करेगा. ईयू के क्लाइमेट कमिश्नर मिगल अरिआस ने कहा कि ‘पेरिस जलवायु करार से किसी को भी पीछे नहीं हटना चाहिए. ट्रम्प ने व्हाइट हाउस रोज गार्डन में दिए अपने संबोधन में घोषणा की कि अमेरिका 195 देशों के खराब समझौते का क्रियान्वयन तत्काल रोकेगा, उन्होंने कहा कि मैं ऐसे समझौते का समर्थन नहीं कर सकता जो अमेरिका को सजा देता है. यह समझौता हमारे देश पर भारी वित्तीय एवं आर्थिक बोझ पैदा करता है. ट्रंप ने पूर्ववर्ती राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा किए गए इस समझौते को ऐसा संधि पत्र करार दिया जो अमेरिका के आर्थिक प्रतिद्वंद्वियों भारत, चीन एवं यूरोप के लिए लाभकारी है. उन्होंने कहा कि मुझे पिट्सबर्ग का प्रतिनिधित्व करने के लिए निर्वाचित किया गया है ना कि पेरिस का, मैं नहीं चाहता कि अन्य नेता और अन्य देश अब हम पर और हंसे, अब वे ऐसा नहीं करेंगे. ट्रंप ने यह नहीं बताया कि इस समझौते से अमेरिका के अलग होने की प्रक्रिया औपचारिक रूप से कब और कैसे शुरू होगी. उन्होंने कहा कि हम इससे बाहर हो रहे हैं लेकिन फिर से बातचीत शुरू करेंगे और हम देखेंगे कि क्या हम एक ऐसा समझौता कर सकते हैं जो उचित हो। अगर हम कर सकें तो यह अच्छा होगा और अगर नहीं कर सकें तो भी कोई बात नहीं. ट्रंप ने कहा कि हमने यह फैसला इसलिए लिया क्योंकि इससे अमेरिकी कारोबार और रोजगार पर बुरा असर पड़ा है. उन्होंने कहा कि भारत को पेरिस समझौते के तहत अपनी प्रतिबद्धताएं (Commitments) पूरी करने के लिए अरबों डॉलर मिलेंगे और चीन के साथ वह आने वाले कुछ सालों में कोयले से चलने वाले इलेक्ट्रिक प्लांट्स को दोगुना कर अमेरिका से आगे निकल जाएगा. डेमोक्रेटिक नेता नैन्सी पेलोसी ने कहा कि इस समझौते से बाहर आना जलवायु संकट के खिलाफ लड़ाई में अमेरिकी नेतृत्व को छोड़ देना है. अगर राष्ट्रपति ट्रंप चाहते हैं कि चीन और भारत जैसे देश जलवायु पर कड़े और तेज़ कदम उठाएं तो उन्हें पेरिस समझौते के जवाबदेही और कार्यान्वयन प्रावधानों के जरिए ऐसा करना चाहिए ना कि समझौते से बाहर निकलकर. पेरिस जलवायु करार से अमरीका के पीछे हटने का मतलब बाक़ी दुनिया के लिए झटका है. इसमें कोई शक नहीं है कि पेरिस जलवायु करार से ट्रंप के पीछे हटने के कारण इस समझौते के लक्ष्यों को पाना दुनिया के लिए मुश्किल हो गया. पेरिस जलवायु करार का मुख्य लक्ष्य वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी दो डिग्री से नीचे रखना है. वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में अमरीका का 15 फ़ीसदी योगदान है. इसके साथ ही अमरीका विकासशील देशों में बढ़ते तापमान को रोकने के लिए वित्तीय और तकनीकी मदद मुहैया करना वाला सबसे अहम स्रोत है. अमरीका के क़दम का असर दूसरे राजनयिक नतीजों के रूप में भी देखा जा सकता है. अमरीका का कॉर्पोरेट घराना इस बात के साथ मजबूती से खड़ा है कि पेरिस जलवायु करार से पीछे नहीं हटना चाहिए. गूगल, ऐपल और सैकड़ों बड़े जीवाश्म ईंधन उत्पादक कंपनियों ने राष्ट्रपति ट्रंप से आग्रह किया था कि वह पेरिस जलवायु करार के साथ बने रहें. एक्सन मोबिल के सीईओ डैरेन वूड्स ने ट्रंप को एक निजी पत्र लिख पेरिस जलवायु करार के साथ बने रहने का आग्रह किया था.

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