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यूनेस्को ने प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेष को वर्ल्ड हेरिटेज साइट में शामिल कर लिया है। यूनेस्को की वेबसाइट पर इसके शामिल होते ही विश्व के प्रथम विश्वविद्यालय नालंदा की खोई प्रतिष्ठा को पुनः एक नई ऊंचाई मिल गयी।
यूनेस्को नेशंस एजुकेशनल, साइंटिफिक एंड कल्चरल ऑर्गनाइजेशन (यूनेस्को) ने महाबोधि मंदिर के बाद बिहार के दूसरे स्थल नालंदा के खंडहर को विश्व धरोहर में शामिल किया है। विश्व धरोहर में शामिल होने वाला यह भारत का 33 वां धरोहर है।
दुनिया के इस पहले आवासीय अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय में दुनिया भर से आए 10 हजार छात्र रहकर शिक्षा लेते थे। 2,000 शिक्षक उन्हें दीक्षित करते थे। यहां आने वाले छात्रों में बौद्ध यतियों की संख्या ज्यादा थी। प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय में तीन लाइब्रेरी थीं। इनके नाम रत्नसागर, रत्नोदधि व रत्नरंजिता थे। माना जाता है जब विश्वविद्यालय में आग लगायी गयी, तो ये पुस्तकालय छह माह तक जलते रहे थे। इतना ही नहीं, यह भी माना जाता है कि विज्ञान की खोज से संबंधित पुस्तकें विदेशी लेकर चले गये थे।
वर्ल्ड हेरिटेज साइट में शामिल होने से यहां आने वाले सैलानियों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि होगी। सैलानियों को मिलने वाली सुविधाओं में बढ़ोतरी के साथ ही सुरक्षा व्यवस्था पहले की अपेक्षा अधिक चुस्त होगी। धरोहर के कम से कम दो किलोमीटर दूरी को बफर जोन घोषित किया गया है। इसके विकास, सुरक्षा व संरक्षण की जिम्मेवारी आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया और बिहार सरकार की होगी।
नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेषों की खोज अलेक्जेंडर कनिंघम ने की थी, जो बोधगया से 62 किलोमीटर व पटना से 90 किलोमीटर दक्षिण में 14 हेक्टेयर में फैले हैं। पुरातात्विक और साहित्यिक साक्ष्यों के आधार पर माना जाता है कि नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना 450 ई के आसपास हुई थी। गुप्त वंश के शासक कुमार गुप्त ने इसकी स्थापना की थी। हर्षवर्द्धन ने भी इसको दान दिया था। हर्षवर्द्धन के बाद पाल शासकों ने भी इसे संरक्षण दिया। न केवल स्थानीय शासक वंशों, बल्कि विदेशी शासकों ने भी इसे दान दिया था। विश्वविद्यालय का अस्तित्व 12वीं शताब्दी तक बना रहा। लेकिन तुर्क आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने इस विश्वविद्यालय को जला डाला।
खुदाई में मिली सभी इमारतों का निर्माण लाल पत्थर से किया गया है। परिसर दक्षिण से उत्तर की ओर बना हुआ है। मठ या विहार इस परिसर की पूर्व दिशा में स्थित थे, जबकि मंदिर या चैत्य पश्चिम दिशा में। इस परिसर की सबसे मुख्य इमारत विहार-एक थी। वर्तमान समय में भी यहां दो मंजिली इमारत है। यह इमारत परिसर के मुख्य आंगन के समीप बनी हुई है। संभवत: यहां ही शिक्षक अपने छात्रों को संबोधित किया करते थे। इस विहार में एक छोटा सा प्रार्थनालय भी अभी सुरक्षित अवस्था में बचा हुआ है। इस प्रार्थनालय में भगवान बुद्ध की प्रतिमा स्थापित है। यह प्रतिमा भग्न अवस्था में है।
पांचवी से बारहवीं शताब्दी में नालंदा बौद्ध शिक्षा का प्रमुख केंद्र बन चुका था। सातवीं शताब्दी में ह्वेनसांग भी यहां अध्ययन के लिए आया था। मंदिर संख्या 3 इस परिसर का सबसे बड़ा मंदिर है। इस मंदिर से समूचे क्षेत्र का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है। यह मंदिर कई छोटे-बड़े स्तूपों से घिरा हुआ है। इन सभी स्तूपो में भगवान बुद्ध की मूर्तियां बनी हुई हैं। ये मूर्तियां विभिन्न मुद्राओं में बनी हुई हैं।
डॉ. प्रवीण कुमार मिश्र, पुरातत्व अधीक्षक, पटना ने यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज साइट में शामिल हो जाने के बाद कहा कि इससे न सिर्फ नालंदा और बिहार, बल्कि पूरे देश की गरिमा बढ़ी है। गरिमा बढ़ने के साथ ही भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण व बिहार सरकार के दायित्व भी काफी बढ़ गये हैं।
नालंदा के अवशेष को वैश्विक धरोहर घोषित होने के बाद हमारा मान और बढ़ गया है। रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। यहां के लोग इसके लिए बधाई के पात्र हैं, जिन्होंने इसे अबतक संजोकर रखा।