उच्चतम न्यायालय ने  तीन तलाक का मामला संवैधानिक पीठ को भेज दियाl मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर की पीठ ने गुरुवार को तीन तलाक से जुड़े सभी मामले को संवैधानिक पीठ को सौंप दियाl पांच जजों की यह पीठ 11 मई से इस मामले की सुनवाई करेगी। पीठ में मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर हो सकते हैं। 11 मई से संवैधानिक पीठ तीन तलाक मामले पर लगातार चार दिनों तक इस मामले पर दोनों पक्ष को सुनेंगेl इसके साथ उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि दोनों पक्ष चार हफ्ते में अपना जवाब दाखिल करेंl सुप्रीम कोर्ट में 11 मई से गर्मियों का अवकाश शुरू हो रहा है, इस कारण कई वरिष्ठ वकीलों ने उस समय सुनवाई का विरोध किया, लेकिन कोर्ट ने वकीलों की आपत्तियां खारिज करते हुए कहा कि यह अहम मुद्दा है और हम इसे सेटल करना चाहते हैं। इसमें देर करना उचित नहीं है। पीठ ने कहा कि देर होने पर आप हमें ही दोष देंगे। जून तक चलने वाले अवकाश काल में संभवत: तीन संविधान पीठें बैठेंगी जो तीन तलाक के अलावा दो अन्य मुद्दों पर सुनवाई करेंगी। इससे पहले 27 मार्च को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि मुसलमानों में प्रचलित तीन तलाक, निकाह हलाला और बहुविवाह की प्रथाओं को चुनौती देने वाली याचिकाएं विचारयोग्य नहीं हैं क्योंकि ये मुद्दे न्यायपालिका के दायरे में नहीं आते हैंl बोर्ड ने कहा कि इस्लामी कानून, जिसकी बुनियाद अनिवार्य तौर पर पवित्र कुरान एवं उस पर आधारित सूत्रों पर पड़ी है, की वैधता संविधान के खास प्रावधानों पर परखी नहीं जा सकती हैl इनकी संवैधानिक व्याख्या जबतक अपरिहार्य न हो जाए, तबतक उसकी दिशा में आगे बढ़ने से न्यायिक संयम बरतने की जरूरत हैl उसने कहा कि याचिकाओं में उठाये गये मुद्दे विधायी दायरे में आते हैं, और चूंकि तलाक निजी प्रकृति का मुद्दा है अतएव उसे मौलिक अधिकारों के तहत लाकर लागू नहीं किया जा सकताl बोर्ड ने शीर्ष अदालत में अपने लिखित हलफनामे में कहा कि शुरू में यह स्पष्ट किया जाता है कि वर्तमान याचिकाएं विचारयोग्य नहीं हैं क्योंकि याचिकाकर्ता निजी पक्षों के खिलाफ मौलिक अधिकारों को लागू करने की मांग करते हैंl यह भी स्पष्ट किया जाता है कि 14, 15 और 21 अनुच्छेदों के तहत गारंटित संरक्षण की उपलब्धता की मंशा विधायिका और कार्यपालिका के विरुद्ध है न कि निजी व्यक्तियों के विरुद्ध हैl बोर्ड ने कहा कि यह स्पष्ट किया जाता है कि वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता न्यायिक आदेश की मांग कर हे हैं जो बिल्कुल अनुच्छेद 32 के दायरे के बाहर हैl निजी अधिकारों को संविधान के अनुच्छेद 32 (1) के तहत व्यक्तिगत नागरिकों के विरूद्ध लागू नहीं किया जा सकता हैl दूसरी ओर कई मुस्लिम महिला संगठनों तथा तीन तलाक की पीडितों ने कहा है कि तीन तलाक बेहद गलत और महिलाओं के खिलाफ है। पुरुष फोन पर तलाक देकर महिला को सड़क पर कर देते हैं न तो उसे भरण पोषण भत्ता मिलता है और न ही कोई सुरक्षा, जिससे उसका जीवन नरक हो जाता है। केंद्र सरकार ने तीन तलाक और बहुविवाह को असंवैधानिक करार देते हुए कहा है कि वह मुस्लिम महिलाओं के पक्ष में है। सरकार ने कहा है कि कई मुस्लिम देशों में तीन तलाक का प्रथा नहीं है जबकि मुस्लिम धर्म वहीं से आया है।
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