संसद पर आतंकी हमले का लेकर फांसी पर लटकाए गए अफजल गुरु की दया याचिका से संबंधित फाइल को दिल्ली की शीला दीक्षित सरकार ने करीब 4 वर्ष तक दबाए रखा था। यह खुलासा हाल में प्रकाशित पुस्तक ‘जर्नलिज्म थ्रू आरटीआई’ में किया गया है। इसमें कहा गया है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय के बार-बार पत्र लिखने और याद दिलाए जाने के बावजूद दिल्ली सरकार ने कोई जवाब न देकर मामले को लटकाए रखा जबकि अफजल गुरु को फांसी देने में विलंब को लेकर केंद्र की कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार को आलोचनाओं का शिकार होना पड़ रहा था।
दिसंबर 2001 में संसद पर हुए आतंकी हमले के सिलसिले में अफजल गुरु को गिरफ्तार कर मुकदमा चलाया गया और उसे मृत्युदंड सुनाया गया। उच्चतम न्यायालय ने चार अगस्त 2005 को उसके मृत्युदंड की पुष्टि कर दी थी। उसकी पत्नी तब्बसुम अफजल ने राष्ट्रपति के पास दया याचिका दायर की लेकिन उसे मृत्युदंड दिए जाने में विलंब होता रहा और यह मसला लगातार सुर्खियों में बना रहा। नवंबर 2008 में मुंबई पर आतंकी हमला होने के बाद यह मसला और गरमा गया तथा 2009 के आम चुनाव के दौरान यह मुद्दा बार-बार उठा। अफजल गुरु को मृत्युदंड देने में हो रहे विलंब की तह में जाने के लिए पुस्तक के लेखक और वरिष्ठ पत्रकार श्यामलाल यादव ने केंद्रीय गृह मंत्रालय, न्याय विभाग तथा दिल्ली सरकार में कई आरटीआई आवेदन के जरिए मामले से संबंधित कई दस्तावेज जुटाए। दिल्ली सरकार से दस्तावेज की प्रतियां लेने के लिए यादव ने फोटोकापी का खर्चा खुद वहन किया। इन दस्तावेजों से जो सचाई सामने आयी उसके अनुसार अफजल गुरु की पत्नी तब्बसुम ने अक्टूबर 2006 को राष्ट्रपति के पास दया याचिका दायर की। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने दिल्ली सरकार के विचार जानने के लिए उसी दिन इसे दिल्ली सरकार को भेज दिया। गृह मंत्रालय के 16 बार पत्र लिखे जाने और याद दिलाए जाने के बावजूद दिल्ली सरकार ने इस पर कोई जवाब नहीं दिया और करीब चार वर्ष तक संबंधित फाइल को दबाए रखा।

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