नीति आयोग के सदस्य विवेक देबराय का कृषि आय को आयकर के दायरे में लाने का सुझाव विवेक सम्मत और किसानों के हित में होने के कारण स्वागत योग्य है। इस मुद्दे को गांधीजी के चंपारण सत्याग्रह के शताब्दी वर्ष में उठाना निश्चित ही रणनीतिक कदम है। चंपारण सत्याग्रह की सफलता का प्रमुख कारण गांधीजी द्वारा सरकार के समक्ष किसानों की आय, खेती की दशा और ब्रिटिश सरकार की तिनकठिया व्यवस्था के प्रभाव के तथ्य व आंकड़े पेश करना था जो सर्वे के जरिए संग्रहीत किए गए थे। अंग्रेज हुकूमत के पास उन्हें काटने का कोई तर्क नहीं बचा था। आज यदि कृषि आय को आयकर के दायरे में लाया जाता है तो इससे प्रत्येक किसान को आयकर फॉर्म भरना अनिवार्य होगा। इसमें कृषि आय की गणना कृषि पैदावार के बाजार भाव पर मौद्रिक मूल्य में से बीज, खाद, कीटनाशक, सिंचाई, श्रम मूल्य, मशीनरी, बीमा और अन्य तमाम कृषि लागतों को घटा कर की जाएगी। यह खेती आय पारिवारिक आय होने के कारण परिवार के खेती कार्य में संलग्न सदस्यों में बांट कर व्यक्तिगत आय की गणना होगी। साथ ही जमीन खरीद, समतलीकरण, कुआं निर्माण, सिंचाई व्यवस्था और कृषि उपकरणों पर निवेश में लिए गए कर्ज के ब्याज पर आयकर छूट भी प्राप्त होगी। इससे आयकर विभाग के मार्फत देश को बहुत महत्त्वपूर्ण आंकड़े प्राप्त होंगे जो सरकार और किसानों के लिए उपयोगी साबित होंगे। मुझे नहीं लगता कुछ अपवादों को छोड़ कर कोई किसान आयकर के दायरे में आएगा। लेकिन इससे देश को पांच मुख्य लाभ होंगे। पहला, किसानों की वास्तविक आय का ही नहीं, वर्तमान दशा और दिशा का भी पता चल जाएगा कि वे कितनी कम आय में दरिद्रताभरा जीवन यापन करते हैं। इससे किसान कल्याण और कृषि विकास की योजना बनाना भी सरकार के लिए आसान हो जाएगा। दूसरा, कृषि आय की आड़ में कर चोरी बंद हो जाएगी। तीसरा, भ्रष्टाचार व अवैध तरीके से कमाए धन को छिपाना मुश्किल हो जाएगा। चौथा, शहरी अर्थशास्त्रियों और आधुनिक युवाओं का यह भ्रम मिट जाएगा कि खेती लाभ का सौदा है और उस पर आयकर न लगाना और कृषि पर सब्सिडी देना न्यायोचित नहीं है। पांचवां, यह भी पता चल जाएगा कि खेती पर आयकर का विरोध करने वाले किसान हितैषी हैं या स्वहितेशी?भारत सरकार को कृषि पर आयकर लगाने की दिशा में रणनीतिक कदम आगे बढ़ाने चाहिए ताकि गांधीजी के चंपारण सत्याग्रह के शताब्दी वर्ष में किसानों के लिए यह कदम एक वरदान साबित हो सके और कर चोरों के लिए अभिशाप।