कर्ज में डूबे पंजाब के कैप्टन कड़े राजनीतिक निर्णय ले पाएंगे क्या?
पंजाब कभी देश का सबसे अमीर राज्य हुआ करता था, आज 1.3 लाख करोड़ रुपये के कर्ज में डूबा है। राज्य की नई सरकार ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में चार प्रमुख वादे किए थे। इनमें किसानों की कर्ज माफी, हर घर में एक रोजगार, कर्ज के दुष्चक्र से मुक्ति और सत्ता में आने के चार सप्ताह के भीतर राज्य को नशे से मुक्ति दिलाना शामिल रहा है।
राज्य की मौजूदा वित्तीय स्थिति के आलोक में प्रदेश के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह और उनकी सरकार के लिए यह काम बहुत मुश्किल है। वर्ष 2016-17 का बजट अनुमान बताता है कि पंजाब सरकार 7,983 करोड़ रुपये के राजस्व घाटे की शिकार है। वर्ष 2014-15 में यह घाटा 6,500 करोड़ रुपये था। सामान्यतया यह घाटा कम राजस्व प्राप्तियों, उच्च व्यय और बिजली सब्सिडी के कारण हुआ है।
क्रेडिट रेटिंग एजेंसी इक्रा ने अपनी एक हालिया रिपोर्ट में कहा है कि पंजाब सरकार ने बहुत अधिक बिजली सब्सिडी दे रखी है और उसका राजस्व व्यय भी अधिक है। वित्त वर्ष 2016 में उसकी बिजली सब्सिडी राजस्व प्राप्तियों के 20 फीसदी तक रही। इसके अलावा ब्याज भुगतान भी सरकार की राजस्व प्राप्तियों के 22 फीसदी के बराबर रहा। जो चौथे वित्त आयोग द्वारा निर्धारित 10 फीसदी के स्तर से बहुत अधिक है।
पंजाब उन कुछ सरकारों में शामिल है जो RBI से समय-समय पर अग्रिम हासिल करते रहे हैं। इसका अर्थ यह है कि राज्य की वित्तीय स्थिति ठीक नहीं। पंजाब में बीते पांच साल से राजकोषीय घाटा और राजस्व घाटा दोनों लगातार बढ़ रहे हैं। वर्ष 2016-17 में इन दोनों घाटों के क्रमश: 13,087 करोड़ रुपये और 7,982 करोड़ रुपये रहने का अनुमान पूर्व में जताया जा चूका है।
इन कठिन वित्तीय परिस्थितियों में सरकार के लिए किसानों का कर्ज माफ करना आसान नहीं होगा। एक अध्ययन के मुताबिक राज्य के किसानों पर वर्ष 2014-15 में करीब 69,355 करोड़ रुपये का कर्ज था, जिसमें 56,481 करोड़ रुपये का संस्थागत ऋण शामिल है। वहीं सहकारी समितियों से लिया गया कर्ज करीब 8,890 करोड़ रुपये था।
कांग्रेस पारंपरिक मझोले और छोटे उद्यमों मसलन होजरी, टेक्सटाइल, खेल का सामान, लकड़ी का सामान, हाथ के उपकरण और हल्की मशीनरी में नई जान फूंककर पर्याप्त रोजगार तैयार करना चाहती है। साथ ही नए कारोबारी क्षेत्र तैयार कर घरेलू और विदेशी निवेशकों को प्रदेश में नई फैक्टरियां लगाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहती है। उसने उद्योग जगत को पांच रुपये प्रति यूनिट की दर पर बिजली देने के साथ ही पानी पर सब्सिडी और बेहतर सीवेज व्यवस्था देने का का भी वादा कर चुकी है। परन्तु पंजाब का रिकॉर्ड देखते हुए यह काफी मुश्किल लगता है।
RBI के आंकड़े बताते हैं कि प्रदेश में फैक्टरियों की तादाद घटी हैं। औद्योगिक विकास की सालाना दर वर्ष 2007-08 के 16.61 फीसदी से घटकर वर्ष 2013-14 में मात्र 2.55 फीसदी रह गई। आंकड़ों के मुताबिक औद्योगिक उद्यमिता ज्ञापन के मोर्चे पर राज्य का प्रदर्शन पड़ोसी राज्यों हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश से पीछे है। राज्य सरकार को इससे निपटने के लिए एक समग्र दृष्टिï अपनाने की आवश्यकता होगी।
2015 के एक सर्वेक्षण के अनुसार प्रदेश में 2,30,000 लोग नशे की लत के शिकार हैं जबकि 8,60,000 लोग लगातार नशा ले रहे हैं, ये लोग रोज करीब 1,400 रुपये अपने नशे पर खर्च करते हैं। सरकार को कोई ऐसा तरीका निकालना होगा कि नशे के आदी नशामुक्ति केंद्र तक पहुंचें।
हाँलाकि राज्य के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने खर्च में कटौती के उपायों की कुछ घोषणायें की हैं, इसमें मंत्रियों और विधायकों की विदेश यात्राओं पर रोक शामिल है। लेकिन इसके अलावे राज्य सरकार को कर संग्रह में सुधार की कोशिश भी करनी होगी, नया निवेश जुटाना होगा और सब्सिडी खत्म करने के लिए कुछ कड़े राजनीतिक निर्णय लेने होंगे। कैप्टन यह कर पाते हैं या नहीं भविष्य बतायेगा।