जब शिक्षक अच्छे हों, तो उनकी विदाई में विद्यार्थियों का रोना लाजिमी है. लेकिन क्या आपने कभी ये सुना कि किसी शिक्षक के विदाई समारोह में बच्चों के साथ-साथ गरीब-मजदूर, किसान, महिलाएं, बूढ़े सभी ने आंसू बहाये हों? दरअसल, यह न कोई खबर है और न ही कोई विज्ञापन. यह हमारे समाज के लिए एक आईना है. यह कहानी है संघर्ष, समर्पण, ईमानदारी और कर्तव्य की. इस कहानी से जुड़े जितने भी लोग हैं, शायद मुझसे बेहतर इसे प्रस्तुत कर पाते. शायद इस कहानी को वे सभी बच्चे उस फील के साथ लिख पाते, जो इस कहानी के पात्र हैं. यह कहानी है एक ऐसे शिक्षक की, जिसने अपने कर्मों से पूरे गांव के लोगों की आंखों को नम कर दिया. यह कहानी है उत्तर प्रदेश के गरीब गाजीपुर जिले में बभनौली के एक प्राइमरी स्कूल के शिक्षक और उनके छात्रों की. आज जब पूरे देश की प्राइमरी शिक्षा व्यवस्था दम तोड़ रही है, जहां शिक्षा का अधिकार लागू होने के बावजूद भी बच्चे स्कूल नहीं जा पाते, वहां यह कहानी देश के बच्चों के साथ-साथ शिक्षा व्यवस्था से जुड़े हर व्यक्ति को पढ़नी चाहिए. खासतौर पर पूरे शिक्षक समुदाय को, जिनकी साख में दिन-प्रतिदिन बट्टा लगता जा रहा है. यह कहानी बताती है कि आज प्राचीन गुरु-शिष्य परंपरा भले ही समाप्त दिखाई दे रही हो, लेकिन शिक्षक का कर्त्तव्य अपनी जगह कायम है. साल 2009. उत्तर प्रदेश के सबसे पिछले इलाकों में से एक गौरी बाजार का प्राथमिक विद्यालय पिपराधन्नी गांव. पढ़ाई की दृष्टि से अत्यंत दुर्गम इलाका. यह इतना पिछड़ा था कि कोई भी शिक्षक यहां आने से हाय-तौबा करता था. गांव में शिक्षा की स्थिति बदहाल थी. बच्चे अपने मां-बाप के काम-काज में हाथ बंटाया करते थे. लेकिन साल 2009 में एक शख़्स ने इस गांव के स्कूल में आकर पढ़ाने का साहस दिखाया. यह शख़्स हैं गाजीपुर जिले के बभनौली निवासी अवनीश यादव. शुरूआत में जब अवनीश इस स्कूल में आए, तो स्कूल पूरी तरह से खाली मिला. स्कूल में सिर्फ़ दो-तीन बच्चे ही दिखते थे. चाहते तो अवनीश सरकार के पैसे उठाते रहते और स्कूल में आराम फरमाते. लेकिन अवनीश तो अवनीश ही थे. स्कूल में ऐसी स्थिति देख कर उन्होंने पूरे गांव में शिक्षा की अलख जगाने की ठानी. इस इलाके में गरीब मजदूरों की संख्या अधिक थी, इसलिए लोगों को समझा पाना इतना आसान भी नहीं था. लेकिन बच्चे स्कूल आएं, इसके लिए अवनीश ने हर घर पर दस्तक देनी शुरू कर दी. अवनीश ने लोगों को समझाने के लिए काफ़ी मशक्कत की और शिक्षा का महत्व बताना जारी रखा. आखिर धीरे-धीरे ही सही, लेकिन अवनीश की मेहनत रंग लाई. लोगों ने अपने बच्चों को स्कूल भेजना शुरू कर दिया. अवनीश के कुछ सालों के प्रयास ने ही उस इलाके के बड़े-बड़े कान्वेंट स्कूलों को पीछे कर दिया. अवनीश ने दिन-रात एक कर बच्चों को इतना योग्य बना दिया कि कॉन्वेंट स्कूल के बच्चों से भी लोहा लेने में गुरेज न करें. क्या सुबह, क्या शाम, अवनीश ने बभनौली में शिक्षा के बल पर ग्रामीणों की तकदीर बदलने का जो अभियान शुरू किया, वो लगातार आगे बढ़ता चला गया. अवनीश ने केवल 6 सालों में पूरे बभनौली की तस्वीर बदल कर रख दी. नतीजा यह हुआ कि गांव के लोग अवनीश को अपने बेटे की तरह मानने लगे. उनका सरकारी स्कूल किसी बड़े कॉन्वेंट को फेल कर रहा था. लेकिन अचानक कुछ ऐसा हुआ कि गांव वालों को लगा, उनकी किस्मत उनसे दूर जा रही हो. अवनीश का तबादला हो गया. जब अवनीश की विदाई हो रही थी, तो नज़ारा कुछ ऐसा था, मानो अवनीश दुल्हन हों और पूरा परिवार रो रहा है. अवनीश की विदाई में आंसुओं का सैलाब उमड़ पड़ा था. एक नहीं, दो नहीं, बल्कि पूरा गांव रोया था. स्कूल के बच्चे क्या रोये, अवनीश भी खूब रोये, मजदूर रोये, किसान रोये. क्या बूढ़े, क्या जवान, उस वक्त हर तरफ रूदन था और वातावरण में सिसकियों की आवाज़. बच्चों की हालत अगर आप देख लेते तो सच कहता हूं आपकी आंखें बिना नम हुए नहीं रहतीं. सभी बच्चे एक स्वर में बोल रहे थे- मास्टर साहब आप हमें छोड़ कर मत जाओ, हम बहुत रोयेंगे. लेकिन अपने कर्तव्य के आगे अवनीश भी मज़बूर थे. उन्हें दुल्हन की तरह अपना गांव छोड़कर किसी और की बगिया को सींचने जाना ही था. गांव वालों के मुताबिक, पूरे गांव वाले गांव की सीमा तक उन्हें छोड़ने आए थे. लेकिन अवनीश भी बार-बार पीछे मुड़कर रोते हुए देखते रहे.

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